पूरे देश के 14 बड़े और 39 छोटे एक्यूफर बर्बाद करने वाली फैक्ट्रियों को कड़ी सजा के आदेश कराये, कोई भी गुनहगार बिना सजा के ना बचे, ऐसा कानून बनवाया। देश के सभी जिला कलैक्टर, सभी प्रदूषण अधिकारी को काम बांटे गये। केन्द्रीय भूजल विभाग 23 साल से सुप्रीम कोर्ट को धोखा दे रहा था, इसलिए उसकी पावर छीनी गयी, सुधार नहीं होने की दशा में एनजीटी एक्ट की धारा 26 के तहत कड़ी सजा के आदेश हुये।
मैनें देखा कि ना गंगा तेरा पानी अमृत रहा, ना यमुना तेरी धार निराली रही, मतलब नदी, तालाब का देश में भी सुप्रीम कोर्ट को केन्द्रीय भूजल विभाग बनाना पड़ा। फिर भी कोई हजार लीटर में नहा रहा, कहीं प्यास के लिए सिर फूट रहे, एफआईआर हो रहीं, ज्यादातर नदियां सूखी-सूखी, नहरों का जाल, मगर उनमें पानी नहीं, फसलें सूख रहीं। कहीं-कहीं तो किसानों की बोरिंग फ्लोप गयी, बोर के बाद भी पानी नहीं निकला। यहां तक कि सीजीडब्ल्यूए खुद लिखने लगा कि आधा देश सूख गया, फिर भी पानी की बर्बादी नहीं रूकी। स्वीमिंग पूल हों, इंडस्ट्री हों, बांध हों, इनपर अंकुश लगाने यानी पानी की रक्षा के लिए कोई कानून नहीं।
लिहाजा मामले को लेकर हम एनजीटी गये, आदेश हुआ, कानून बना, केन्द्रीय भूजल विभाग को सजा मिली, एनओसी देने पर पाबंदी लगायी गई। जिस तरह बिजली का बिल आता है, उसी तरह फैक्ट्रियों के पानी के बिल के आदेश हुये, अफसरों के काम बांटे गये, दोषियों को दोनों तरह की सजा और कई हजार दोषियों से बीसों हजार करोड़ जुर्माना के आदेश हुये।